वांछित मन्त्र चुनें

आप्या॑यस्व मदिन्तम॒ सोम॒ विश्वे॑भिर॒ꣳशुभिः॑। भवा॑ नः स॒प्रथ॑स्तमः॒ सखा॑ वृ॒धे ॥११४ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

आ। प्या॒य॒स्व॒। म॒दि॒न्त॒मेति॑ मदिन्ऽतम। सोम॑। विश्वे॑भिः। अ॒ꣳशुभि॒रित्य॒ꣳशुऽभिः॑। भव॑। नः॒। स॒प्रथ॑स्तम॒ इति॑ स॒प्रथः॑ऽतमः। सखा॑। वृ॒धे॒ ॥११४ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:12» मन्त्र:114


बार पढ़ा गया

हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

संसार में कौन वृद्धि को प्राप्त होता है, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (मदिन्तम) अत्यन्त आनन्दी (सोम) ऐश्वर्य्यवाले पुरुष ! आप (अंशुभिः) किरणों से सूर्य्य के समान (विश्वेभिः) सब साधनों से (आप्यायस्व) वृद्धि को प्राप्त हूजिये, (सप्रथस्तमः) अत्यन्त विस्तारयुक्त सुख करने हारे (सखा) मित्र हुए (नः) हमारे (वृधे) बढ़ाने के लिये (भव) तत्पर हूजिये ॥११४ ॥
भावार्थभाषाः - इस संसार में सब का हित करनेहारा पुरुष सब प्रकार से वृद्धि को प्राप्त होता है, ईर्ष्या करनेवाला नहीं ॥११४ ॥
बार पढ़ा गया

संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

कोऽत्र वर्द्धत इत्याह ॥

अन्वय:

(आ) (प्यायस्व) (मदिन्तम) अतिशयेन मदितुं हर्षितुं शील (सोम) ऐश्वर्य्ययुक्त (विश्वेभिः) सर्वैः (अंशुभिः) किरणैः (भव) द्व्यचोऽतस्तिङः [अष्टा०६.३.१३५] इति दीर्घः (नः) अस्माकम् (सप्रथस्तमः) अतिशयेन विस्तृतसुखकारकः (सखा) मित्रः (वृधे) वर्धनाय ॥११४ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मदिन्तम सोम ! त्वमंशुभिः किरणैः सूर्य्य इव विश्वेभिः साधनैराप्यायस्व, सप्रथस्तमः सखा सन् नो वृधे भव ॥११४ ॥
भावार्थभाषाः - इह सर्वहितकारी सर्वतो वर्धते नेर्ष्यकः ॥११४ ॥
बार पढ़ा गया

मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या जगात सर्वांचे हित करणाऱ्या पुरुषाची सर्व प्रकारे उन्नती होते, तशी ईर्षा करण्याची होत नाही.